बर्मा के मुस्लिम
दूर का ढोल सुहाना लगता है |||
कुछ दिनों से रोहिंगिया मुसलमानों के लिए काम करने वाले सिक्खों की तारीफ
में कसीदे सोशल साइट्स पर टहल रहे हैं, कुछ हद तक की जानी वाली कसीदा खानी
तक तो बात ठीक ही रही लेकिन कुछ एहसासे कमतरी के मारे मुसलमानों ने उसे
ढेला बनाकर मुसलमानों पर उछालना शुरू कर दिया और ताना मारना शुरू कर दिया
की मुसलमान कुछ नहीं कर रहा है जबकि हकीक़त ये है की रोहिंगिया मुसलमानों के
लिए सबसे ज्यादा रिलीफ़ वर्क मुस्लिम संगठनों की तरफ़ से ही किया जा रहा है
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लेकिन एहसासे कमतरी में नाक तक
डूब चुके मुसलमानों को इतनी अक़ल भी नहीं बची है की वो गूगल ही करके सही
जानकारी ले लें की वहां जो रिलीफ वर्क हो रहा है उसका नब्बे फीसद से ज्यादा
मुस्लिम संगठन ही कर रहे हैं ||
मुसलमानों में एहसासे कमतरी में डूबे लोगों की पूरी एक फ़ौज है जो मुस्लिम
तंजीमों द्वारा जान की बाज़ी लगाकर किये जाने वाले कामों को कोई अहमियत नहीं
देता है, उसका ज़िक्र तक नहीं करता है जबकि कोई नॉन मुस्लिम अगर सिर्फ
नाख़ून कटा ले तो प्रोपगेंडा कर करके, कसीदा पढ़ा पढ़ के उसे शहीद बना देता है
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न जाने एहसासे कमतरी में डूबे हुए इन लोगों की एहसासे कमतरी कब ख़तम होगी
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मो० इकबाल की कलम से
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